कुछ कुण्डलियाँ
कविता-
एक
कविता करना कब कठिन, किन्तु
कठिन कवि-कर्म
कविता क्रंदन क्रौंच का,
करुणा कवि का धर्म
करुणा कवि का धर्म, भावना
यदि कल्याणी
हर संचारी भाव, ग्रहण कर
लेता वाणी
पुष्ट छंद हैं कूल,
नवोरस-प्लावित सरिता
लहर-लहर श्रृंगार,
नीति-दर्शन है कविता.
कविता-
दो
कविता के प्याऊ लगे, पहुंचे
प्यासे पास
काव्य-सरसता के बिना, रही
अनबुझी प्यास
रही अनबुझी प्यास, मंच पर
बैठे जोकर
पुलकित मंचाध्यक्ष, देख
कवयित्री सुन्दर
छाये हों जब मेघ, नहीं
दिखता है सविता
हास्य-लास्य के बीच, खो गयी
हिंदी कविता.
कविता-
तीन
कविता के इस दौर में, छंद
हुआ मतिमंद
पड़े हुए हैं पार्श्व में,
सुष्ठु सामयिक छंद
सुष्ठु सामयिक छंद हुए
कविता से बाहर
कविता है वह आज, चढ़े जो
नहीं जुबां पर
धीरे-धीरे सूख गयी गीतों की
सरिता
लय-यति-गति, सब त्याग, हो
गयी कैसी कविता?
होली- एक
होली में उड़ने लगा,
रंग-अबीर-गुलाल
ममता का पानी मिला, घुलने
लगा मलाल
घुलने लगा मलाल, प्रेम मन
में अंखुवाया
होंठो पर है फाग और पुलकित
है काया
मनुज वेश में रति-अनंग कर
रहे ठिठोली
पियो प्रेम पीयूष, पिलाने आयी
होली.
होली- दो
होली आयी, हो गये बच्चे बड़े
सुजान
बूढ़े भी रँग खेलकर, थोड़ा
हुए जवान
थोड़ा हुए जवान, पुराने दिन
याद आये
सबके सब हैं यार, कौन किसको
समझाये
बच्चे, बूढ़े और जवान, सभी
की है हमजोली
हृदय-हृदय के तार, मिलाने
आयी होली.
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