कुछ हाइकु
प्राची की लाली
उषा ने सजायी है
पूजा की थाली।
**
कमल खिला
जल पर उतरी
ताज़ा ग़ज़ल।
**
बरखा आती
हंसती-लहराती
धरा नहाती।
**
बया की झोंझ
झूल रही हिंडोला
हवा की पेंग.
**
गौरय्या उड़ी
हिल उठी फुनगी
टा-टा करती.
**
हवा ने भेजी
खुशबूवाली पाती
पके हैं आम.
**
कभी आम को
कभी चौकीदार को
देखे चिडिया.
**
क़लम लगी
खा गई दशहरी
टुइया आम.
**
अखाडा सजा
लड़े पहलवान
हारी जनता.
प्राची की लाली
उषा ने सजायी है
पूजा की थाली।
**
कमल खिला
जल पर उतरी
ताज़ा ग़ज़ल।
**
बरखा आती
हंसती-लहराती
धरा नहाती।
**
बया की झोंझ
झूल रही हिंडोला
हवा की पेंग.
**
गौरय्या उड़ी
हिल उठी फुनगी
टा-टा करती.
**
हवा ने भेजी
खुशबूवाली पाती
पके हैं आम.
**
कभी आम को
कभी चौकीदार को
देखे चिडिया.
**
क़लम लगी
खा गई दशहरी
टुइया आम.
**
अखाडा सजा
लड़े पहलवान
हारी जनता.
पौ फट रही-
सुर पाखी
ने छेड़ी
राग भैरवी
रवि-रश्मियाँ
उतरीं द्वार-द्वार--
खुले कपाट
खुलने लगे
सरसिज के
पट-
उड़ा भ्रमर
सूर्यागमन-
नभलीन हो
रहा
भोर का
तारा
सूर्य काँधे
पे--
दिहाड़ी
मज़दूर
चला काम
पे
नभ में लाली-
उड़े जा रहे पंछी
पी.टी. करते!
समुद्र में से
निकल रहा सूर्य-
तट पे भीड़!
भोर हो
गयी-
खूँटे से
बँधी गाय
काटे चक्कर
चाय का
पानी
खौल रहा
चूल्हे पे-
ऊँघती बहू
कमल खिले-
खिलखिलाने लगे
उदास
बच्चे
दूब नटनी-
शीश पर सँभाले
ओस की बूँद
लुढ़क रही
पुरइन पे
बूँद-
हाथ पे
मोती
आषाढ़ लगा-
टर्रा रहे दादुर
ताल किनारे
चमकी आँखें-
नभ-कैनवस पे
मेघाकृतियाँ!
छा रहे मेघ-
खोल रहा मयूर
अपने पंख
पहली बूँद-
माटी से आने लगी
सोंधी महक
मेघ झरते-
बज रहा सितार
एक लय में
वर्षा की झड़ी-
भरने लगे खेत,
ख़ुश किसान!
शावर खुले-
नहाने लगे पौधे
झूम-झूम के !
आ गयीं
बूँदें-
खुलने लगे
छाते
रंग-बिरंगे!
पेड़ भीगता-
कोटर में
दुबकी
झाँके
गौरैया!
बारिस थमी-
चलता बना
राही,
टपके पेड़
वर्षा की भोर-
बरामदे में बैठी
भीगी गौरया
मयूर नाचे-
कोई देखे, न देखे,
क्या परवाह!
एक हो रहे
बिखरे हुए मेघ-
छुपता सूर्य
वर्षा की झड़ी-
श्वेत-श्याम हो रहीं
गंगा-जमुना
००
तट छूकर
लौट रही लहर-
मैं ही तटस्थ!
गौरय्या उड़ी-
हिल उठी फुनगी
‘टा-टा’ करती!
हवा
की पेंग-
झूल रही हिंडोला
बया की झोंझ!
पीपल कटा-
उगा रहा बोनसाई
फ्लावर-पॉट ।
सूरज डूबा-
अन्धकार से मिली
परछाई भी!
डार से टूटी
उड़ी जा रही पत्ती
हवा के संग।
तंत्री
के तार
टूटे,
टूटते गये-
पसरा
मौन।
हाँ, कोई
था तो
ठीक
से देखा नहीं,
ओह!
तुम थे।
तुम
भी हँसो-
बन
गयी जि़न्दगी
चकरघिन्नी।
चहक
उठा
सूना-सूना
आँगन-
आयी
है बहू
गौने
की शाम-
बहू
से ज़्यादा बेटा
शरमा
रहा
बिके
सपूत-
कैंपस
सेलेक्शन
हुआ
सफल
गाय
बुढ़ायी-
होगी
नहीं गाभिन,
हो
गयी छुट्टी।
बैल बुढ़ाया-
मेटाडोर में लदा
बहाये आँसू!
रौशनी
गयी-
बेटे
से बड़ा हुआ
मोतियाबिन्द!
इकट्ठे हुए
पार्क में बूढ़े लोग-
छलकी आँखें!
बल्ब
पुराना
दप्प
से हुआ,
बस-
हाई
वोल्टेज़!
स्मृति में तुम-
डोल गयी पुरवा
मेरे भीतर
ग़ुस्सा ठंडाया-
झरने लगे आँसू
धुला अंतस
विवाह
तय-
तुलसीचौरे पर
घी का दीपक
शुभ विवाह-
बुआजी लगा रहीं
हल्दी की छापी।
हल्दी का रंग
देह के पृष्ठों पर,
मन तो श्वेत!
तन ब्याहोगे,
मन कैसे ब्याहोगे?
प्रेम के बिना!
बहू
आ गयी
बिटिया
बनकर,
जिउ
जुड़ाया!
गौना होने को-
लजा रही बिटिया
अम्मा उदास
अम्मा उदास
बेला महकी-
तुम्हारी सान्ध्र गन्ध
रोम-रोम में
पति शराबी-
गुंथी ही रह गयी
जूड़े में बेला
गौने से लौटी
बेटी है गुमसुम-
अम्मा को चिंता।
भेंट हुई है
बहुत दिनों पर-
मान-मनौव्वल!
भाई
के हाथों
पिट
रही बहन-
हँस
रही माँ।
जूठन
खाये,
उतरन
पहने,
फिर
भी ख़ुश !
चाय
बना दे,
दवा
भी दे दे बेटी!
फिर
जा स्कूल।
तीस की हुई
कुँवारी बैठी बेटी ,
जुटी न दैजी !
माँ
भी न रोयी-
फसरी
लगा मरी
जवान
बेटी।
मनौती
व्यर्थ,
झाड़-फूँक
भी व्यर्थ,
पति
में कमी।
नियोग
किया
फिर
भी गोद खाली-
हाय
क़िस्मत!
छः-छः
बेटियाँ-
सपने
में दिखता
पेटपोछना!
भारी
हैं पैर-
खिला
रही कन्याएँ
बेटे
की आस!
बेटी
या बेटा?
भ्रूण-परीक्षण
में
माँ
भी उत्सुक।
वो
ऐसा ही है,
कुटम्मस
भी करे
और
प्यार भी।
पति
लापता,
जेठा
है तो क्या हुआ?
पेट
तो पाले ।
अच्छी नहीं है
ससुर की नज़र,
बहू अकेली!
करवा
चौथ-
मुँह
ढापे रो रही
उजड़ी
माँग।
दूध उबला-
‘तू-तू मैं-मैं’ हो रही
सास-बहू में।
बहू
कर्कशा-
सास-ससुर
सीधे,
घर
नरक!
ज़ुबान
खोली-
चाँटा
पड़ा तड़ाक
सन्न
है बहू
ग़ुस्से
की मार-
ले,
तलाक़, तलाक
और
तलाक़!
ग़ुस्सा
ठंडाया-
इद्दत
की मियाद
काटे
न कटे।
(इस्लाम
में तलाक़ के बाद शौहर अगर बीवी से शादी करना चाहे, तो
बीवी को किसी और से शादी कर तलाक़ लेना पड़ता है। इस (दूसरे) तलाक़ के 3
महीने 13 दिनों बाद ही पहले वाले शौहर से शादी हो सकती है।
इस अवधि को ‘इद्दत’ कहते हैं।)
सीता
का त्याग-
राम
की शक्ति-पूजा,
मिली
मिट्टी में।
घर-घर
में
विषपायिनी
मीरा,
एक
न कृष्ण!
आर्ट की कॉपी-
फूल के चित्र पर
बैठी तितली
इंटरवल-
बातों के बीच खुले
टिफ़िन–बॉक्स
एक-दो-तीन--
टनटनाया घंटा,
भागो रे घर !
वक़्त
पढ़ाता-
सोलह-दूनी
आठ,
हम
पढ़ते।
दीपक
सूना-
अमावस
की रात
कैसे
कटेगी?
माचिस
गीली-
घिस
गयीं तीलियाँ,
जला
न दीप।
निगल
गया-
अँगनाई
की धूप
ऊँचा
पड़ोस!
पाती
लिखना
भूल
गये हम भी-
मोबाइल
है!
प्रेशर हॉर्न-
अंकुश से आहत
चिंघाड़ा हाथी !
जीतेगा
नहीं,
जानता
है कछुआ-
फिर
भी दौड़ा।
सच
तो बोलो-
जीभ
न जल जाए,
तो
ही कहना!
शहर
आके
भौंचक
आदिवासी-
कैमरे
ऑन!
‘हो-हो’
करता
जारवा-निकोबारी-
हँसें
सैलानी।
आखि़र
हारा
माइकल
जैक्सन
रंगभेद
से!
गले
तो लगीं,
पर
एक न हुईं
गंगा-जमुना।
चटोरी
जीभ-
देवता
पे चढ़ाती
पशु
की बलि।
आदमी
भूखा-
मूर्ति
के मुख लगा
अभागा
अन्न।
रास
रचाता
परस्त्रियों
के संग
है
भगवान!
दाँव
लगाता
पत्नी
को भी जुए में-
है
धर्मराज!
रोटी
का सच
खोजने
न निकला
कोई
‘सिद्धार्थ’
आया
है कुंभ
बारह
सालों बाद,
धो
डालो पाप
पत्थर
बनो,
फिर
लगेगा तुम्हें
छप्पन
भोग
क्यों
बे बकरे!
आ
गयी बकरीद,
ख़ुश
तो है न!
बकरा कटा—
रक्त की धार बही,
छलके आँसू !
दीनी
ज़ुनून-
बन
गया आखि़र
मानव-बम!
चाहे
गोल हो,
या
कि अष्टकोणीय,
गुम्बद
एक।
कोई
हिन्दू है,
कोई
मुसलमान,
इन्सान
कहाँ?
मन्दिर
बना,
मस्जिद
बन रही,
बना
न स्कूल।
सजा
अखाड़ा-
लड़े
पहलवान,
हारी
जनता!
चुनाव
आया-
फिर
चढ़ने लगी
काठ
की हांडी ।
चुनाव
बीता,
धूम
मचाता आया
जंगल-राज।
नमक-रोटी
मिल
जाए साहब!
मैं, हिन्दुस्तान।
नींद
तो आये,
देख
लूँगा हुजूर!
रोटी
का ख़्वाब।
अमीर
लदा
ग़रीब
की पीठ पे-
पैसे
की मार!
देश
ग़रीब,
तब
कैसे हो गये
नेता
अमीर?
तय
हो गयी
लूट
में हिस्सेदारी-
बजट
पास!
हँसते
रहे
नक़ली
नोटों पे भी
महात्मा
गांधी!
भत्ते
की भिक्षा-
सिर
के बल खड़ा
बेरोज़गार।
अपनी
हाँके,
न
देखे छोटा-बड़ा,
ज़ाहिल
टी.वी.।
फैसला
हुआ-
केस
ला ‘कोट’ हुए,
न्याय
न हुआ।
गश्त
लगाते
ज़ेड
सिक्योरिटी में
विक्रमादित्य।
हाँ,
अंधेरा हूँ,
बैठा
हूँ दीप-तले,
क्या
कर लोगे?
भूमि-अर्जन--
कॉर्पोरेट
की चाँदी
मरे
किसान।
ख़ुश्बू न भाये-
खंड-खंड हो गयी
इत्र की शीशी
छप
रही है
कविता
की किताब,
पढ़ेगा
कौन?
भू के भीतर
टकरायीं परतें-
आया भूकंप
धरती माता!
कैसी ली करवट?
बच्चे ही दबे!
दाना चुगती
जल्दी-जल्दी चिडि़या-
हो रही साँझ
चिडि़या लौटी-
चोंच से गिरा दाना
सूने नीड़ में !
कहाँ से लाते
चौबीसों-घंटे पानी?
तुम निर्झर!
छप्पर-छानी
हल-माची-कुदाल-
वाह रे बाँस!
धरा में धँसा
नाप रहा आकाश
बाँसों का वन
बाँसुरी मौन-
मची हुई है धूम
पिपिहड़ी की!
कभी सूप में
कभी टिकठी पर-
बाँस के साथ
टका जवाब-
दरवाजे पे टँगी
बाँस की चिक
बाँसुरी बने,
कपाल क्रिया करे-
तटस्थ बाँस!
रस चूसती
छाती पर सवार
अमरबेल!
छाती पर सवार
अमरबेल!
नेवला भिड़ा-
फुफकारता साँप
हो रहा ठंडा!
शान्ति के दूत
नभ नापते लौटे
पस्त होकर ।
कहाँ जाना था,
कहाँ पहुँच गये-
लौटना होगा!
नाल निकली-
रफ़्तार पड़ी धीमी
पड़ा चाबुक!
भोज होने को-
फटा था, बच गया
केले का पत्ता!
गुलाब खिला-
पंडित जी ने खोंटा
पूजा के लिए
ओवरऐज-
लौट गये देखुआ
हुआ न ब्याह
बेरोज़गारी-
झुक गयी कमर
चालीस में ही
जग से जीता,
अपनों से भी जीता,
स्वयं से हारा!
अपनों से भी जीता,
स्वयं से हारा!
जीत, न हार-
क्रीडा का आनंद ही
जीवन-सार।
क्रीडा का आनंद ही
जीवन-सार।
कल आया था
और कल जाना भी-
और कल जाना भी-
आज जीना है!
रोते आया था
मुस्कुराते जाऊँगा-
मुस्कुराते जाऊँगा-
तुम
देखना!
नयन गले
प्रिय की प्रतीक्षा
में-
कोटर बचे।
मोम पिघला
जब भी जली बाती-
दर्द का रिश्ता।
प्रेमबंधन-
लिपटती जाती है
लता पेड़ से।
स्वातंत्र्य-पर्व--
सीमा पर तिरंगा
फहर
रहा।
सीमा से लौटा
तिरंगे में लिपटा
माँ का सपूत
वार्ता हो रही-
अन्धा पिता टटोले
फ़ौज़ी की लोथ ।
मातमी
धुन-
मुखाग्नि देता पिता
हुआ मूर्छित!
छलनी शव-
रो रही रुदाली भी
खून के आँसू!
बाल नौकर
बाँट रहा जलेबी-
आज़ादी-पर्व।
झंडा बदला
शासक भी बदले
ग़ुलामी वही!
मंत्री की कार-
फड़फड़ाता झंडा-
भीड़ हैं ख़ुश
बच्चा बीनता
प्लास्टिक के तिरंगे
कूड़ेदान से!
मैच फिक्सिंग-
टीम को हराकर
जीता खिलाड़ी।
लहरा गिरा
लोकार्पण का फीता-
बजी तालियाँ
कूड़ा बीनता
चुप देखता बच्चा-
स्कूली बच्चे को
ट्रैक्टर आया-
हल-माची-पगहा
पड़े कोने में!
कटी ‘आर.सी.’—
नीलामी पे ट्रैक्टर,
बिकी पगड़ी।
बँटा आँगन-
फिसलती जा रही
मुट्ठी की रेत।
रक्षाबंधन-
बहन है आने को,
जेब है ख़ाली!
निकले
आँसू-
बँध न पायी राखी
कटे हैं हाथ !
सफ़ेद बाल
कनपटी के पास-
पहली घंटी!
डॉक्टर को भी
मिल न रही पल्स-
हो गयी साँझ!
आँचल हटा-
स्तन से लगा शिशु
मुस्कुरा उठा!
भालू का नाच-
अम्मा की गोद बैठा
हँसता बच्चा
छुट्टी
का दिन-
छत पे माँ देखती
पार्क में बच्चे
मेस
का खाना-
माँ के हाथ की रोटी
माँ के हाथ की रोटी
याद आ गयी
संडे की शाम-
कल जायेंगे बच्चे
माँ है उदास !
कल जायेंगे बच्चे
माँ है उदास !
बच्चा शैतान-
परेशान मम्मा ने
जड़ा थप्पड़!
सो गया बेबी
इंतज़ार करके-
मम्मी क्लब में!
बछड़ा भूखा—
पन्हाने लगी गाय,
दुधे दूधिया।
प्यास खरायी-
नल पड़े हैं टूटे,
ज़ेब भी ख़ाली !
श्वान
जो भौंका—
ऊँघते सिपाही ने
फटका डंडा।
बच्चा रुआँसा—
आज भी छूट गयी
स्कूल की बस।
साँप,
साँप है
चन्दन, चन्दन
है
तुम
क्या हो ?
ईमान
बिका-
भुगतान
हो रहा
वाशरूम
में!
सुनायी
सज़ा
खाप
पंचायत ने,
लटकी
लाशें !
ज़ेब
है ख़ाली-
ड्राइंग
रूम सजे
लाफिंग
बुद्धा ।
स्वर्ण तपता
आभूषणों के लिए-
देश है भूखा !
अकाल
पड़ा—
हरक़त
में आयीं
जीवित
लाशें !
००
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