गुरुवार, 26 मार्च 2015

एक नवगीत
निर्विकार बैठे

नये-नये राजे-महराजे
घूम रहे ऐंठे.

लोकतंत्र के अभिजन हैं ये
देवों से भी पावन  हैं ये,
सेवक कहलाते-कहलाते
स्वामी बन बैठे.

नयी सदी के नायक हैं ये
छद्मराग के गायक हैं  ये,
लोक जले, तो जले, किन्तु ये
निर्विकार बैठे.

लाज-शरम पी गए घोल कर
आत्मा बेची तोल-तोल कर,
लाख-करोड़ नहीं कुछ इनको

अरबों में पैठे.                 २५ -३-१५ 

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