एक नवगीत
निर्विकार बैठे
नये-नये राजे-महराजे
घूम रहे ऐंठे.
लोकतंत्र के अभिजन हैं ये
देवों से भी पावन हैं ये,
सेवक कहलाते-कहलाते
स्वामी बन बैठे.
नयी सदी के नायक हैं ये
छद्मराग के गायक हैं ये,
लोक जले, तो जले, किन्तु ये
निर्विकार बैठे.
लाज-शरम पी गए घोल कर
आत्मा बेची तोल-तोल कर,
लाख-करोड़ नहीं कुछ
इनको
अरबों में पैठे. २५ -३-१५
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